Janlokpal Andolan
Poetry written during Janlokpal Aandolan
रस्ते पर उतर
मुफ्त की आज़ादी का तुझे क्या मूल्य है नादान;
बाते करना बड़ी बड़ी होता है बड़ा ही आसान
गर देश की, समाज की तुजे कोई है फिकर,
छोड़ कर सब कामकाज, आज रस्ते पर उतर
बुला रहा है तुझे हर एक गरीब इन्सान
जो पस्त है गरीबी से, महंगाई से परेशान
कभी तो 'मैं' को छोड़कर कर औरोंकि भी फिकर
समाजशील तू भी है, आज रस्ते पर उतर
लढ रहे अकेले ही तेरे वो साथी आज से
बढ़ा दे हाथ,साथ में तू जुड़ जा बड़े नाज से
डटा रहे तू अंत तक, न हो कही तितर बितर
जनलोकपाल चाहिए तो, आज रस्ते पर उतर
- दीपबाझिगर
रस्ते पर उतर
मुफ्त की आज़ादी का तुझे क्या मूल्य है नादान;
बाते करना बड़ी बड़ी होता है बड़ा ही आसान
गर देश की, समाज की तुजे कोई है फिकर,
छोड़ कर सब कामकाज, आज रस्ते पर उतर
बुला रहा है तुझे हर एक गरीब इन्सान
जो पस्त है गरीबी से, महंगाई से परेशान
कभी तो 'मैं' को छोड़कर कर औरोंकि भी फिकर
समाजशील तू भी है, आज रस्ते पर उतर
लढ रहे अकेले ही तेरे वो साथी आज से
बढ़ा दे हाथ,साथ में तू जुड़ जा बड़े नाज से
डटा रहे तू अंत तक, न हो कही तितर बितर
जनलोकपाल चाहिए तो, आज रस्ते पर उतर
- दीपबाझिगर
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