उम्मीद जिंदगी की
कुछ उम्मीदों की जगह लकीरोंमें खोजते है,
हम खुदको हमेशा अपनों में सोचते है...
काश ये लम्हा ना गुजरता..और ये पल ठहर जाता...
हम जो चाहते,वो हमे मिल जाता...
पर ये चाहत भी हमे बेमानीसी लगती है,
तेरी आरजू भी हमे अब धुंदलीसी दिखती है....
क्योंकि ये उम्मीद वो आशा की किरण नहीं जो सेहर देखेगी..
बस रास्ते में पलटेगी और दामन छोड़ कही दूर चली जाएगी...
बस रास्ते में पलटेगी और दामन छोड़ कही दूर चली जाएगी...
कभी हसाएगी और कभी रुलाएगी...
काश ये उम्मीद लकीरों से बढ़कर होती...
जो हमारी कल्पनाओकी उड़ान भरती....
पर लिखने वाले ने सब इतनी खूबसूरती से रचा है....
हम भी नहीं समझ पाएंगे क्या उसकी मर्ज़ी या रज्हा है
बस तबतक इसी तरह ज़िन्दगी के दावपेंच देखते रहेंगे...
उसकी लिखी किताबमें अपने पन्ने पढ़ते रहेंगे,,
पर काश उसने मुझे एक मौका दिया होता...
अपनी मर्ज़ीसे एक उम्मीद को सच करने और जीने का .........
तो शायद एक उम्मीद में ज़रूर पूरी करती
जिसे लकीरोंसे छुपाके दिलमे कैद करती !!!
- मोनिका सिंग
Comments
Post a Comment